पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है. दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाए जाने की वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है.
मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से मनुष्य नरक में मिलने वाली यातनाओं से बच जाता है साथ ही अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। आइए जानते हैं नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा? आखिर ये पर्व भगवान श्री कृष्ण से कैसे जुड़ा है? और इस पर्व को नरक चतुर्दशी क्यों कहाँ जाता है?
1. ऐसे नाम पड़ा नरक चतुर्दश
2. नरकासुर कौन था?
3. नरकासुर को क्या श्राप मिला था?
4. भगवान कृष्ण की 16 हजार पटरानियों कैसे बनी?
5. इसलिए महिलाएं करती हैं 16 श्रृंगार?
6. नरक चतुर्दशी पूजन विधि
7. नरक चतुर्दशी उपाय
ऐसे नाम पड़ा नरक चतुर्दशी:
नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने वाला पर्व कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसलिए इस चतुर्दशी का नाम नरक चतुर्दशी पड़ा। इस दिन सूर्योदय से पहले उठने और स्थान करने का महत्त्व है। इससे मनुष्य को यम लोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है।
नरकासुर कौन था?
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर एक दैत्य था जिसने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान कर रखा था। नरकासुर ने संतों के साथ 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आकर कहा कि इस नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।
नरकासुर को क्या श्राप मिला था?
नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध किया। और भगवान श्री कृष्ण ने सबको उसके बंधन से छुड़ाया था और जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।
भगवान कृष्ण की 16 हजार पटरानियों कैसे बनी?
नरकासुर के वध के बाद श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद कन्याओं ने भगवान कृष्ण से गुहार लगाई कि समाज अब उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा, इसके लिए आप कोई उपाय निकालें। हमारा सम्मान वापस दिलवाएं। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से 16 हजार कन्याओं से विवाह कर लिया। 16 हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परंपरा शुरू हुई।
इसलिए महिलाएं करती हैं 16 श्रृंगार?
ऐसी मान्यता है की भगवान कृष्ण ने इस दिन 16 हजार कन्याओं का उद्धार किया, इसी खुशी में इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं। नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन 16 ऋृंगार करने से रूप सौन्दर्य और सौभाग्य बढ़ता है।
नरक चतुर्दशी पूजन विधि:
नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है. नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है. मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें. ऐसा करने से मनुष्य द्वारा साल भर किए गए पापों का नाश हो जाता है. शाम के समय देवताओं की पूजा करके दीपदान करना चाहिए। इसके लिए चार बत्तियों वाला दीपक पूर्व दिशा में मुख कर के घर के मुख्य द्वार पर रखना चाहिए। मंदिरों, रसोईघर, स्नानघर, देववृक्षों के नीचे, बगीचे, आदि स्थान पर दीपक जलाना चाहिए। विधि-विधान से पूजा करने वाले सभी पापों से मुक्त हो जाते है और लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
नरक चतुर्दशी उपाय:
- नरक चतुर्दशी के दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले उठ जाएं और अपने पूरे शरीर पर तिल्ली का तेल लगा लें. ऐसा करने से व्यक्ति को नरक के भय से मुक्ति मिलती है.
- नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन स्नान के बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से सौंदर्य की प्राप्ति भी होती है.
- नरक चतुर्दशी के दिन कुलदेवी, कुल देवता, और पितरों के नाम से भी दिया जलाएं.
- इस दिन माता काली की भी पूजा करनी चाहिए. बंगाल में इस दिन को काली के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. इसलिए, इसे काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है
- ऐसी मान्यता है कि इन दीपकों की रोशनी से पितरों को अपने लोक का रास्ता मिलता है और वे प्रसन्न होते हैं. संतान सुख प्राप्ति के लिए नरक चौदस के दिन दीपदान करना चाहिए. दीप दान से वंश की वृद्धि होती है.
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